अपनी अस्मिता की पहचान के लिए,
आधुनिकता की कसौटी कब तक चलेगी,
अंग्रेजी के अंग्रेजी परिधान के साथ,
हिन्दी की लंगोटी कब तक चलेगी।
आधुनिकता के साये में, हिन्दी का कार्येक्रम,
न जाने कहाँ सोता है,
चंदामामा चंदामामा चिल्लाते बच्चे को
जब माँ कहती हैं बेटा,
चाँद नहीं मून होता है।
चंडीगढ़ में देखा एक वाकया
रिक्शावाला हिन्दी भाषी से भिड़ गया
पूछने पर उसने ये राज़ खोला
"हम अंग्रेजी न जानत बाबु', वोह बोला।
'सचिवालय' सरीखा टेढा अंग्रेजी शब्द
हमरी समझ में न बाबूजी आए
ये हिन्दी में सिर्फ़ सेक्रेट्रिएट बोले
तो अभी देत हैं पहुंचाए।
हिन्दी की सुरा पीने से क्या होगा
यहाँ रगों में अंग्रेजी का खून जारी है,
हम बस पत्तों पे हिन्दी छिड़क रहें हैं,
यहाँ जड़ों में अंग्रेजि़यत की महामारी है।
हम लाख हिन्दी दिवसों के खड़ताल बजाएं
लाख हिन्दी मांगें लोगों से भिक्षा में
स्वाधीनता के मन्दिर में हिन्दी की प्रतिमा
सोई पड़ी है 'प्राण प्रतिष्ठा' की प्रतीक्षा में।
गर प्राण फूंकने हैं इस प्रतिमा में
तो दिल से इसकी करें आराधना
जापानी, रूसी ओ' जर्मन से हम सीखें,
राष्ट्रभाषा का महत्व पहचानना।
देश यदि अग्रणी बनाना है तो
अपनी भाषा को अंग लगालों,
हिन्दी में लेखन, वाचन को
अपने समग्र चेतन में ढालो।
बर्तानिया की गुलामी ओढ़ कर
विसंगत भाषा की लाठी संभाले,
देश को सिर्फ़ पिछलग्गू बनने को
न बनो तुम लार्ड मैकाले।
मनोरंजक लेखन में आपने बहुत ही गहरी और सार्थक बात कही है. हिंदी की पहचान के लिए आभार. जारी रहें.
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क्या आप हैं उल्टा तीर के लेखक/लेखिका?
bhayi hum hindaustani hai, hindi hi samjhenge na...
ReplyDeletehttp://ab8oct.blogspot.com/
http://kucchbaat.blogspot.com/
hindi ki baat bemaani hai. english hi aaj humari jhuthi status ka pahchaa hai.
ReplyDeletekabhi mere blog par bhi aakar mera maarg-darshan karein.
सुन्दर आक्रोश
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