ऐ मेरे आत्मीय,
तुम मुझ से बात कभी न करना
तुम्हारे शब्द मेरे हृदय को आघात पहुंचाते हैं
मेरी कल्पना के तुम
यथार्थ के तुम से मेल नहीं खाते।
मैं तुम्हारी विमुखता को ही
अपने अन्तर में बसी तुम्हारी सुंदर छवि में
रूपांतरित कर लूँगा।
तुम्हारे अस्तित्व का एहसास ही
मेरे लिए तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श है
यही अकल्प्निये सत्य में जी रहा हूँ
और ये सत्य ही
मेरे अन्तर की रिक्तता को
क्षण क्षण
एक अपरिचित संगीत से भरता जाता है।
Tuesday, September 8, 2009
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waah...........khoobsoorat bhavon se saji rachna........gahan anubhuti............dard ka charam choo le jo............dil ko choo gayi.............pyar ka ek rang aisa bhi...........wah waah.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अहसासों से भरी रचना.
ReplyDeleteBahut Barhia
http://sanjay.bhaskar.blogspot.com