उस जज्बा-ऐ-खुदी को जगा लिया मैंने
सरुर-ऐ-इश्क में तेरे जो सो गया था कहीं
अपने गुमशुदा वजूद को भी पा लिया मैंने
तेरी जुल्फ के पेचो-ख़म में खो गया था कहींतुझे पाना ही समझता था में बाइसे-हस्तीमें तुझा मकसदे-हयात समझ बैठा थाजुज तेरे भूल गया था की कुछ और भी हैतेरे जमाल ही को कायनात समझ बैठा थाअच्छा किया जो तुने ठुकरा दिया मुझको
भटकता रहता वगरना इश्क के सराब में ही
तेरी बेरुखी ने मुझे हौसले नए हैं दिए
महव रहता वगरना फकत तेरे शबाब में
पाने को और भी बहुत कुछ है ज़माने में
मसर्रत-ऐ-दो जहाँ में तेरा ग़म छुपा लूँगा मैं
जो महल तेरी खातिर थे सजाये मैंने
उनमे नामुरी-ओ-सना को सजा लूँगा मैं