Sunday, September 13, 2009

हिन्दी की पहचान



अपनी अस्मिता की पहचान के लिए,
आधुनिकता की कसौटी कब तक चलेगी,
अंग्रेजी के अंग्रेजी परिधान के साथ,
हिन्दी की लंगोटी कब तक चलेगी।

आधुनिकता के साये में, हिन्दी का कार्येक्रम,
न जाने कहाँ सोता है,
चंदामामा चंदामामा चिल्लाते बच्चे को
जब माँ कहती हैं बेटा,
चाँद नहीं मून होता है।

चंडीगढ़ में देखा एक वाकया
रिक्शावाला हिन्दी भाषी से भिड़ गया
पूछने पर उसने ये राज़ खोला
"हम अंग्रेजी न जानत बाबु', वोह बोला।

'सचिवालय' सरीखा टेढा अंग्रेजी शब्द
हमरी समझ में न बाबूजी आए
ये हिन्दी में सिर्फ़ सेक्रेट्रिएट बोले
तो अभी देत हैं पहुंचाए।

हिन्दी की सुरा पीने से क्या होगा
यहाँ रगों में अंग्रेजी का खून जारी है,
हम बस पत्तों पे हिन्दी छिड़क रहें हैं,
यहाँ जड़ों में अंग्रेजि़यत की महामारी है।

हम लाख हिन्दी दिवसों के खड़ताल बजाएं
लाख हिन्दी मांगें लोगों से भिक्षा में
स्वाधीनता के मन्दिर में हिन्दी की प्रतिमा
सोई पड़ी है 'प्राण प्रतिष्ठा' की प्रतीक्षा में।

गर प्राण फूंकने हैं इस प्रतिमा में
तो दिल से इसकी करें आराधना
जापानी, रूसी ओ' जर्मन से हम सीखें,
राष्ट्रभाषा का महत्व पहचानना।

देश यदि अग्रणी बनाना है तो
अपनी भाषा को अंग लगालों,
हिन्दी में लेखन, वाचन को
अपने समग्र चेतन में ढालो।

बर्तानिया की गुलामी ओढ़ कर
विसंगत भाषा की लाठी संभाले,
देश को सिर्फ़ पिछलग्गू बनने को
न बनो तुम लार्ड मैकाले।

Tuesday, September 8, 2009

आत्मीय

ऐ मेरे आत्मीय,
तुम मुझ से बात कभी न करना
तुम्हारे शब्द मेरे हृदय को आघात पहुंचाते हैं
मेरी कल्पना के तुम
यथार्थ के तुम से मेल नहीं खाते।
मैं तुम्हारी विमुखता को ही
अपने अन्तर में बसी तुम्हारी सुंदर छवि में
रूपांतरित कर लूँगा।
तुम्हारे अस्तित्व का एहसास ही
मेरे लिए तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श है
यही अकल्प्निये सत्य में जी रहा हूँ
और ये सत्य ही
मेरे अन्तर की रिक्तता को
क्षण क्षण
एक अपरिचित संगीत से भरता जाता है।

Monday, September 7, 2009

राहे-इश्क-3

वोह मस्ती भरी निगाहें फिर जादू कर रहीं हैं,
वोह संगदिल जालिम फिर मुझ पे मर रही है
वोह मुस्कुराती है फिर मेरे सलाम के बाद
आगाज़ हो रहा है फिर अंजाम के बाद.

राहे-इश्क - 2

वोह तुझसे ही बतियायेगा, मुझे देखेगा भी नहीं,
मुझे दोज़ख देगा, जन्नत में रखेगा ही नहीं,
ये हश्र करेगा खुदा, मेरी उम्र तमाम के बाद,
क्योंकि लेता हूँ उसका नाम तेरे नाम के बाद।

Sunday, September 6, 2009

राहे-इश्क

राहे-इश्क पर मैं चला तेरे पैगाम के बाद,
रास्ता दिखता गया हर इक गाम के बाद,
ये पता चला मुझे सफर तमाम के बाद,
कि मंजिल दूर हो रही है हर मुकाम के बाद।

Saturday, September 5, 2009

जीने की इच्छा

तीर-ऐ-चश्म, शमशीर-ऐ-अबरू, दार-ऐ-गेसू, बाँहों का दाम,
असीर मुझे या कत्ल करोगे, इतना बन सँवरने के बाद।
"असीर" मुझे न कत्ल करो तुम, बस बिस्मिल ही रहने दो,
मैं जिंदा रहना चाहता हूँ, आप पे मरने के बाद।

Tuesday, September 1, 2009

जज्बा-ऐ-खुदी

उस जज्बा-ऐ-खुदी को जगा लिया मैंने
सरुर-ऐ-इश्क में तेरे जो सो गया था कहीं
अपने गुमशुदा वजूद को भी पा लिया मैंने
तेरी जुल्फ के पेचो-ख़म में खो गया था कहीं

तुझे पाना ही समझता था में बाइसे-हस्ती
में तुझा मकसदे-हयात समझ बैठा था
जुज तेरे भूल गया था की कुछ और भी है
तेरे जमाल ही को कायनात समझ बैठा था


अच्छा किया जो तुने ठुकरा दिया मुझको

भटकता रहता वगरना इश्क के सराब में ही

तेरी बेरुखी ने मुझे हौसले नए हैं दिए

महव रहता वगरना फकत तेरे शबाब में

पाने को और भी बहुत कुछ है ज़माने में

मसर्रत-ऐ-दो जहाँ में तेरा ग़म छुपा लूँगा मैं

जो महल तेरी खातिर थे सजाये मैंने

उनमे नामुरी-ओ-सना को सजा लूँगा मैं

१२ नवम्बर

दुनिया का चाँद सदियों से है आसमां पर
मेरा चाँद इस रोज़ उतरा था यहाँ पर
इक नूर रोशन है उससे मेरे जहाँ में
पर इक फासला भी है दोनों के दरमियाँ में
हम दोनों रहे हैं जुदा ही सदा से
यही इल्तजा है मेरी उस खुदा से
उसे चाहता हूँ कितना ये उसको बता दे
मेरा नगमा-ऐ-सौगात उसको सुना दे

पहली बात

मेरे प्यार की जुबान फकत हैं ये गीत
झांकती है इनसे फकत मेरी प्रीत
मुझे क्या हक है इनको छुपा के रखूं
फकत अपने दिल में छुपा के रखूँ