Saturday, September 5, 2009

जीने की इच्छा

तीर-ऐ-चश्म, शमशीर-ऐ-अबरू, दार-ऐ-गेसू, बाँहों का दाम,
असीर मुझे या कत्ल करोगे, इतना बन सँवरने के बाद।
"असीर" मुझे न कत्ल करो तुम, बस बिस्मिल ही रहने दो,
मैं जिंदा रहना चाहता हूँ, आप पे मरने के बाद।

1 comment:

  1. ये पता चला मुझे सफर तमाम के बाद,
    कि मंजिल दूर हो रही है हर मुकाम के बाद। ...zinda rahne ka saleeka koee seekhe humse,koee mousam ho sare shaakh chakate rahna....plz word verification hata le....

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